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मृत्यु एक अटल सत्य है, जिसे टालना संभव नहीं है। यह जीवन का एक ऐसा पड़ाव है जहां से आत्मा अपनी यात्रा को अगले चरण में ले जाती है। यह सांसारिक जीवन एक अस्थायी पड़ाव है, जहां हर व्यक्ति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए आगे बढ़ता है। श्यामा देवी का जीवन भी पूरी तरह से धर्म और आध्यात्मिकता के पथ पर चला , उनका जन्म जयपुर निवासी श्री दामोदर लाल जी चोटिया – श्रीमती नाथी देवी की पुत्री के रूप में हुआ और जयपुर स्थित ठिकाना मंदिर श्री काले हनुमान जी चांदी की टकसाल निवासी महंत श्री गोपाल दास जी मंगलहारा से वो परिणय सूत्र में बंधी। महंत श्री गोपाल दास जी स्वयं हनुमान उपासक है और दिव्य पुरुष है उनके सानिध्य में रहकर श्यामा देवी ने जीवन भर धार्मिक और सामाजिक कार्यों से अनेक लोगों को प्रेरित किया। उन्होंने सदैव दूसरों की मदद की, उनकी समस्याओं का समाधान किया और उन्हें जीवन जीने की सही दिशा दिखाई। परिवार और समाज को उन्होंने अपना वात्सल्यमयी प्रेम प्रदान किया, और उनके प्रति अपने कर्तव्यों का पूर्ण निर्वाह किया। उनकी भूमिका सदैव एक मार्गदर्शक की रही, अपने प्रेम और करुणा से उनसे मिलने वाले हर व्यक्ति को सराबोर किया।
ठिकाना मंदिर श्री काले हनुमान जी चांदी की टकसाल की बहुत मान्यता है और देश विदेश से लोग हनुमान जी के इस दरबार से जुड़े है , ऐसा कोई अधिकारी , व्यापारी , राजनेता नहीं है जिसने इस दरबार के दर्शन ना किये हो ,आम इंसान की आस्था भी इस मंदिर से जुडी हुई है और दरबार से प्रसाद प्राप्त करना सभी अपना सौभाग्य मानते है। माँ अपने परिवार को बहुत प्रेम से भोजन करवाती थी और मंडी जा कर स्वयं सब्जियां लाने का शौक भी उन्हें था जब भी वो सब्जी लेने जाती चुपके से हर सब्जी वाले को दस रुपये की बोहनी करवाती थी बिना कोई सौदा लिए , सब्जी वाले उनकी इस करुणा से अभिभूत रहते थे ये बात घर वालों को बाद में पता चली जब बारिश के दिनों फिसलन के डर से उनका सब्जी मंडी जाना बंद करवा दिया था। ऐसी बहुत सी घटनाएं उनके जीवन से जुडी है , उनका जीवन एक प्रेरणा स्रोत है, जो हमें सिखाता है कि सादगी, शांति और भक्ति के मार्ग पर चलकर भी हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
श्यामा माँ का पूरा जीवन सरलता, शांत स्वभाव, सादगी, भगवत आराधना एवं अनुशासन से परिपूर्ण रहा है। जीवन पर्यन्त उन्होंने ना केवल अपने परिवार के समग्र विकास को केंद्रित किया बल्कि परिवार में आध्यात्मिक विकास एवं संस्कारों के बीजारोपण को भी उतना ही महत्व दिया। महंत श्री के साथ गृहस्थ धर्म का आध्यात्मिकता से पालन किया , उनकी इस दिव्यता को हम सभी महसूस करते है जब हम उनके ओजस्वी पुत्रों राजकुमार जी , जयकुमार जी व् योगेश जी से मिलते है। उनकी दो सुपुत्रियां, तीन पुत्र, पुत्रवधू, पौत्र, पौत्री के साथ दोहिते, दोहिती को वो अपने आशीर्वाद से परिपूर्ण कर के गई है।
अब वो इस संसार को छोड़ एक अलौकिक यात्रा पर निकल गई है , उनकी अनुपस्थिति में, उनकी शिक्षाएं और उनके द्वारा दिखाया गया मार्ग सदा परिवार और उनके सानिध्य में रहने वालों को प्रेरित करता रहेगा। उनके जीवन से सीख मिलती है कि सच्चे धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन का अर्थ केवल पूजा-पाठ ही नहीं, बल्कि अपने कर्मों और विचारों में ईमानदारी, सच्चाई और करुणा को अपनाना है। उनके द्वारा सिखाए गए मूल्य सदैव याद रहेंगे।
भावांजलि –
अंशु हर्ष