लेखन और मैं , हम प्रेम में है और सदा रहेंगे – लोकेश गुलयानी
लोकेश गुलयानी, एक प्रतिभाशाली लेखक, विभिन्न विषयों में अपनी लेखनी से जीवन के छोटे-बड़े लम्हों को सजीव करते हैं। जयपुर से ताल्लुक रखने वाले लोकेश वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं, लेकिन अपनी लेखन यात्रा में पूरी तरह सक्रिय हैं। उनकी लेखनी में सकारात्मकता और सृजनात्मकता की झलक मिलती है, जो पाठकों को गहराई से जोड़ती है। उनकी लिखी कहानियाँ जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं और आम जिंदगी के अनुभवों को अद्वितीय ढंग से प्रस्तुत करती हैं। उनके लेखन की यही विशेषता उन्हें पाठकों के बीच खास बनाती है। उनके साथ हुई बातचीत के कुछ अंश आपके समक्ष प्रस्तुत हैं।
लोकेश: यूँ तो इस सवाल का कोई सीधा जवाब नहीं है। क्योंकि लेखन मेरे व्यक्तित्व और पेशे का अभिन्न अंग शुरू से ही रहा है। हाँ! उसके स्वरुप समय-समय पर बदलते रहे। पर अगर आप औपचारिक लेखन की बात कर रहीं हैं तो उसकी शुरुआत 2014 से हुई जो तब से अनवरत जारी है। लेखन के लिए मुझे मेरी पत्नी मनीषा गुलयानी ने प्रेरित किया। सिर्फ़ प्रेरित ही नहीं, मैं कहूंगा कि उन्हीं का उकसावा था कि मैं लेखन कर पाया।
प्रश्न : रेडियो में काम करने का अनुभव कैसा रहा और इससे आपकी लेखन शैली पर क्या प्रभाव पड़ा?
लोकेश : रेडियो में काम करने का मतलब है कल्पनाशीलता में बढ़ोत्तरी। सिर्फ़ आप हैं और आपके शब्द हैं जिससे आपको समां बाँधना है। इसलिए रेडियो में काम करने के कुछ ही समय में आप अपने अंदर एक आत्मविश्वासी, हाज़िर जवाब, कल्पनाशील और आपके कार्यक्रम अनुरूप लेखक पाते हैं। चूंकि मैं अपने रेडियो स्टेशन पर प्रोग्रामिंग हेड के साथ-साथ रात का शो भी करता था इसलिए मेरे अंदर एक धीर-गंभीर, रोमांटिक, शेरो-शायरी इत्यादि से लबरेज़ लेखन शैली जन्म लेने लगी। इसके अतिरिक्त एक ख़ास किस्म का व्यंग्य या कहूं सही समय पर पंच देने की शैली भी रेडियो की ही देन है। रेडियो में जब हम लिखते हैं तो विज़ुअल अपील लाने की हमारी कोशिश रहती है कि ऐसा लिखें-बोले कि श्रोता को ख़ुद-ब-ख़ुद ही दृश्य दिखने लगे। यही अपील मेरे लेखन का भी हिस्सा है।
प्रश्न : आपकी कविता और कहानियों के पीछे की प्रमुख थीम्स और संदेश क्या होते हैं?
लोकेश : अभी तक किसी एक थीम, सन्देश या जॉनर से बंध कर मैंने अपना लेखन नहीं किया है। मैं लेखन के मामले में थोड़ा मनमौजी किस्म की प्रवृति रखता हूँ पर इसका ये मतलब कतई नहीं है कि मैं अनुशासन में नहीं हूँ। मैं ‘तुरंत’ की अवधारणा से भयाक्रांत नहीं हूँ। बल्कि मेरा मन इसकी भर्तस्ना ही करता है। मैं समसामयिक विषयों पर अपनी राय देनें से या लेखन करने से बचता हूँ। फिर भी यदि मेरे लेखन की बात करें तो मैंने अब तक रोमांस, हॉरर, फंतासी, मनोविज्ञान, ग्रे इत्यादि जॉनर में लिखा है। मेरे लेखन के अंतर्निहित सन्देश वृहद अच्छाई (ग्रेटर गुड) की अवधारणा का अनुसरण करते हैं। मेरी कोशिश हमेशा साहित्यिक परिपाटी का पालन करते हुए, श्रोता को कुछ चमत्कृत करते हुए ग्रेटर गुड पर अपनी रचना खत्म करने की रहती है। कभी ये लक्ष्य मिल भी जाता है और कभी नहीं भी पर लेखन और प्रयास उससे अधिक प्रभावित नहीं होता।
प्रश्न : आपकी अभी तक प्रकाशित पुस्तकों को हम साल के हिसाब से सूचीबद्ध करना चाहेंगे ।
लोकेश : देखिये यदि अभी तक के मेरे प्रकाशित लेखन की बात करें जो हल्की-फ़ुल्की कवितायें और शेरो-शायरी से इतर है वो इस तरह से है । पाठकों के अवलोकन में आसानी हो जाएगी इस तरह ।
१) जे – कश्यप प्रकाशन – 2015, (हॉरर, हिंदी उपन्यास)
२) बोध – हिन्द युग्म – 2018, (फ़न्तासी, हिंदी उपन्यास)
३) ज़हनी अय्याशी – कश्यप प्रकाशन – 2018 (कविता और शेरो-शायरी संग्रह)
४) हम प्रेम में हैं – श्रीजा प्रकाशन – 2019, 2024 (कहानी संग्रह)
५) यू ब्लडी शिट पंजाबी – हिन्द युग्म – 2020 (कहानी संग्रह)
६) हिम्मत की लाली – रेडग्रैब बुक्स, 2021 (रोमांटिक, उपन्यास)
७) लड़कियाँ होंगी – श्रीजा पब्लिशर्स, 2023, 2024 (कहानी संग्रह)
८) ऑक्सफ़ोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस के लिए कक्षा 3 से 5 के लिए 18 कहानियों का लेखन 2024
मेरी कोशिश एक बार कहानी संग्रह और उसके बाद उपन्यास लाने की रहती है। जैसा कि मेरी सांतवी पुस्तक लड़कियां होंगी (कहानी संग्रह) आया था तो अब मैं अपने नए उपन्यास पर काम कर रहा हूँ।
प्रश्न: आपके लिए साहित्यिक आयोजनों में भाग लेना क्यों महत्वपूर्ण है और इससे आपको क्या लाभ मिलता है?
लोकेश : साहित्यिक आयोजन जिसमें वरिष्ठ और समकक्ष / समकालीन लेखकों के सत्र भी होते हैं, उनमें प्रतिभागी बनना मेरा प्रिय शगल है। कभी-कभी जो बात हमें कई किताबें पढ़कर या लिखकर नहीं समझ आती, वह किसी सत्र में यूँ ही उनके अनुभवों में सुनने को मिल जाती है। तो ये कोई खज़ाना मिल जाने जैसा क्षण रहता है। इसके अलावा इस भागती-दौड़ती ज़िन्दगी में साहित्यिक आयोजन ही लेखकों को एक-दूसरे से मिलने का अवसर प्रदान करता है तो कोई भी लेखक इसे मिस नहीं करना चाहता। इसके अलावा नेटवर्किंग और पाठकों से संवाद करने का भी ये बेहतरीन प्लेटफार्म है। नवोदित लेखकों को तो इनका हिस्सा ज़रूर ही बनना चाहिए।
प्रश्न: भविष्य में आपके साहित्यिक परियोजनाओं के लिए क्या योजनाएं हैं?
लोकेश : कुछ लम्बा चौड़ा प्लान नहीं है। किताबें लिखता रहूँगा। कुछ-कुछ कहानियों पर लघुफिल्म बनने की बातें हैं पर वो सब अभी भविष्य के गर्भ में है। मैं सबसे पहले तो क़िताब ही लिखना चाहता हूँ फिर उसका रूपांतरण किसी भी ऑडियो-वीडियो स्वरुप में होता रहे ये एक अलग बात है। पर मेरी फ़िक्र अपनी क़िताब पूरी होने तक की रहती है। भविष्य में घूमना भी काफ़ी चाहता हूँ ताकि अनुभव और अनुभूतियाँ बटोर सकूँ जो कभी भविष्य के लेखन का हिस्सा बनें। मैं एक ऐसा लेखक बनना चाहता हूँ जिसे, ‘ढूंढ कर पढ़ा जाये (हँसते हुए)।’