जयपुर के मथुरावाला गांव की महिलाएं इस दिवाली को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाते हुए एक अनूठी पहल कर रही हैं। ये महिलाएं गाय के गोबर से दीये बना रही हैं, जो न केवल दिवाली की रोशनी को और पवित्र बना रहे हैं, बल्कि इन महिलाओं के जीवन में भी आशा की नई किरण जगा रहे हैं।
गाय के गोबर का उपयोग पहले खाद और उपलों तक ही सीमित था, लेकिन अब यह ग्रामीण महिलाओं के लिए आर्थिक संबल बन चुका है। चेतनाग्राम संस्थान की अध्यक्ष विभा अग्रवाल के नेतृत्व में, मथुरावाला गांव की महिलाएं पिछले आठ वर्षों से गोबर से दीये तैयार कर रही हैं। विभा अग्रवाल जी का कहना है, “हमने गुरुजी पंडित श्री राम आचार्य जी के सौ सूत्रों में से स्वावलंबन को चुना और उसी भावना के तहत चेतनाग्राम संस्थान के जरिए इन दीयों का निर्माण शुरू किया।”
इन दीयों का निर्माण केवल एक व्यवसाय नहीं, बल्कि महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता का एक माध्यम है। ये दीये न केवल दिवाली के त्योहार को सजीव करते हैं, बल्कि इन महिलाओं के परिवारों के जीवन में भी रौशनी लेकर आते हैं। हर दीया इन महिलाओं की मेहनत, संघर्ष और आत्मनिर्भरता की कहानी कहता है।
विभा अग्रवाल कहती हैं, “दिवाली अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक है। इस दिवाली, जब आप गोबर से बने दीये जलाते हैं, तो आप न केवल पर्यावरण की सुरक्षा कर रहे हैं, बल्कि उन महिलाओं की भी मदद कर रहे हैं, जिनकी मेहनत से ये दीये बने हैं।”
इस दिवाली, आइए हम सभी मिलकर इन इको-फ्रेंडली दीयों से अपने घरों को सजाएं और मथुरावाला गांव की इन मेहनतकश महिलाओं के प्रयासों को सराहें। उनका सहयोग करके हम उनके जीवन में उजाला ला सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे ये दीये हमारे घरों को रौशन करते हैं।