
स्वामी विवेकानंद भारतीय विचारक, योगी एवं आध्यात्मिक गुरु थे। स्वामी विवेकानंद जयंती 12 जनवरी को है । 12 जनवरी का दिन भारत में ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने भारतीय युवाओं को समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित किया तथा समाज एवं राष्ट्र की उन्नति के लिए योगदान देने का आह्वान किया। उनका विश्वास था कि युवकों में अपार शक्ति है एवं योग्य मार्गदर्शन से वे देश को प्रगति की ओर ले जा सकते हैं, परंतु वर्तमान में युवा पीढ़ी अनेक चुनौतियां एवं समस्याओं का सामना कर रही है जिन पर उपाय आवश्यक हैं। प्रस्तुत लेख में युवा पीढ़ी के समक्ष चुनौतियां, समस्याएं एवं उन पर उपाय इस पर विचार किया गया है। पाठकों को इसका निश्चित ही लाभ होगा।
शिक्षा तथा कौशल्य (निपुणता) विकास की बाधाएं – वर्तमान शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन आवश्यक है, क्योंकि केवल पारंपरिक शिक्षा पद्धति पर्याप्त नहीं है। युवा पीढ़ी को डिजिटल कुशलता, नवीन उपक्रम, तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण की आवश्यकता है। शिक्षा संस्थानों में प्राप्त शिक्षा व्यावहारिक नहीं है ऐसा युवकों को लगता है। परिणामस्वरुप उपलब्ध रोजगार के अवसर मर्यादित लगते हैं। शिक्षा में अवसरों की कमी एवं कुशलता में कमी यह एक बड़ी समस्या है।
बेरोजगारी एवं करियर चुनने की समस्या – युवा पीढ़ी को आज के बाजार में या व्यावसायिक बाजार में करियर निर्मित करने में अनेक रुकावटें आती हैं। बेरोजगारी यह एक प्रमुख समस्या है । उच्च शिक्षा प्राप्त करने पर भी अच्छी नौकरियां मिलना कठिन हो गया है। इसके अलावा करियर चुनने के संबंध में असमंजस की स्थिति, अस्थिर मानसिकता, केवल सरकारी नौकरी की ओर लक्ष्य केंद्रित होना, औद्योगिक क्षेत्र की जानकारी का अभाव एवं नई संधियाँ खोजने में उदासीनता, इनके कारण युवकों में नकारात्मकता आती है।
मानसिक स्वास्थ्य का संकट – दिन प्रतिदिन युवा पीढ़ी में मानसिक रोगों का प्रमाण बढ़ रहा है। करियर, प्रतिस्पर्धा, अपेक्षाएं एवं सामाजिक माध्यमों पर होने वाले तनाव के कारण मानसिक समस्याएं गंभीर हो रही हैं। इससे डिप्रेशन, चिंता तनाव एवं आत्महत्या के विचार यह समस्याएं बढ़ गई हैं । मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में जागरूकता एवं उपचार की सुविधाओं के अभाव के कारण यह प्रश्न अधिक विकट हो गया है।
नशे की अधीनता तथा तनाव व्यवस्थापन – वर्तमान समय में अनेक युवा धूम्रपान, मद्यपान एवं ड्रग्स के अधीन हो रहे हैं। यह बुरी आदतें मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल परिणाम करती हैं । तनाव का प्रबंधन संभव न होने के कारण व्यसन या नशे की अधीनता बढ़ रही है। इस प्रकार युवाओं की ऊर्जा का अपव्यय होकर उनका जीवन प्रभावित हो रहा है।
डिजिटल माध्यमों का अत्याधिक प्रयोग तथा सामाजिक जीवन का अभाव – डिजिटल माध्यम (डिजिटल प्लेटफॉर्म्स )आज के युवाओं के जीवन का अविभाज्य अंग बन गया है। सोशल मीडिया, ऑनलाइन गेमिंग एवं मशीनी ज्ञान में अधिक व्यस्त होने के कारण अनेक युवा आभासी, काल्पनिक संसार में अटक गए हैं। परिणाम स्वरूप उनका सामाजिक जीवन, संभाषण की कुशलता एवं वास्तविक संसार के रिश्ते-नाते कमजोर हो गए हैं। काल्पनिक संसार में जीना यह युवाओं के मानसिक एवं सामाजिक स्वास्थ्य के लिए बड़ी समस्या है।
नैतिकता एवं समाज की असमंजस की स्थिति – आज की युवा पीढ़ी अपने सामाजिक नैतिक मूल्यों से कुछ दूर चली गई है ऐसा प्रतीत होता है। समाज में बढ़ती हिंसा और असहिष्णुता एवं सामाजिक दृष्टिकोण में अंतर इससे युवाओं का मानसिक संतुलन बिगड़ता है । समाज के बदलते मूल्य एवं आधुनिक जीवन शैली का दबाव इन समस्याओं को अधिक गंभीर बना रहा है।
इन समस्याओं पर उपाय एवं प्रेरणा – इन समस्त समस्याओं का निराकरण करने के लिए शिक्षा व्यवस्था को अधिक व्यावहारिक बनाना, डिजिटल साक्षरता बढ़ाना, मानसिक स्वास्थ्य के लिए मार्गदर्शन एवं सलाह की सुविधा उपलब्ध कराना, तथा तनाव प्रबंधन का प्रशिक्षण देना इस पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है। इसी के साथ युवाओं को स्वयं को शारीरिक मानसिक एवं बौद्धिक रूप से सशक्त बनाना चाहिए। युवा पीढ़ी देश की अमूल्य संपत्ति है, परंतु यदि इस पीढ़ी ने स्वयं की चुनौतियों का प्रभावपूर्ण तरीके से सामना किया तभी स्वयं के साथ देश की प्रगति संभव है। इसलिए स्वामी विवेकानंद ने आत्मविश्वास, देश प्रेम एवं परिश्रम का महत्व इस संबंध में युवाओं को दी गई शिक्षा आज भी बहुमूल्य है। उनका “उठो जागो एवं जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं होता तब तक मत रुको” ये शब्द युवाओं के लिए प्रेरणादायक हैं। इसी तरह स्वामी विवेकानंद जी ने आत्म उद्धार के विषय में बताया है कि युवाओं को अपने में स्थित दैवी गुण खोज कर उनका विकास करना चाहिए। उन्होंने आत्मविश्वास, कार्य निष्ठा, समाज सुधार के कार्य एवं राष्ट्र प्रेम का महत्व सिखाया है। इस सीख का अपने जीवन में प्रयोग किया तो अपने जीवन का उद्देश्य साध्य होकर समाज भी समृद्ध होगा। प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं के दोष कम करके गुण संवर्धन करने की आवश्यकता है।
आदर्श व्यक्तित्व विकसित करने की आवश्यकता – व्यक्ति के जीवन में किसी भी कठिन प्रसंग के समय मानसिक संतुलन न बिगाड़ते हुए उस प्रसंग का धैर्य पूर्वक सामना करना संभव हो तथा उसके द्वारा प्रत्येक कृति, कार्य आदर्श हो इसके लिए व्यक्ति का मानसिक बल (स्वास्थ्य) उत्तम तथा व्यक्तित्व आदर्श होना आवश्यक है। व्यक्ति के स्वभाव दोष उस व्यक्ति का मन दुर्बल बनाते हैं तथा व्यक्ति के गुण आदर्श व्यक्तित्व विकसित करने में सहायक होते हैं, इसलिए आदर्श व्यक्तित्व विकसित करने के लिए व्यक्तित्व के स्वभाव दोषों का निर्मूलन करके गुण संवर्धन करना आवश्यक है।
सुखी जीवन व्यतीत करने में स्वभाव दोष बड़ी रुकावट – ‘मन एव मनुष्याणां कारणं बन्ध मोक्षयोः। इस वचन के अनुसार मन ही मनुष्य के बंधन के लिए (जन्म मृत्यु के चक्र में अटकने के लिए) तथा मोक्ष अर्थात (जन्म मृत्यु के चक्र से छूटकर सुख- दुख से परे आनंद एवं शांति इनकी नित्य अनुभूति प्राप्त करने का आधार है। व्यक्तित्व के स्वभाव दोष व्यक्ति के दुख के लिए तथा गुण व्यक्ति को सुख प्राप्ति के लिए आधारभूत कारण होते हैं। दैनिक जीवन के विविध प्रसंगों में हमारे द्वारा होने वाले आचरण से स्वयं के गुण और दोष ध्यान में आते हैं। स्वभाव दोष के कारण जीवन में कदम-कदम पर संघर्ष की एवं तनाव की स्थिति निर्मित होती है। ऐसा तनाव निर्मित होने पर आस-पास का वातावरण, स्थिति एवं अन्य व्यक्तियों के स्वभाव दोषों को जिम्मेदार ठहराया जाता है, परंतु स्वयं के दोष खोजने का प्रयत्न नहीं किया जाता। इस कारण स्वभाव दोष जैसे हैं वैसे ही रहते हैं परिणाम स्वरुप मनः शांति प्राप्त नहीं होती। इसलिए जीवन सुखी होने के लिए स्वभाव दोषों की रुकावट दूर करना अनिवार्य है। साधना में भी स्वभाव दोषों की ही अर्थात षड् रिपुओं की ही रुकावट होती है, स्वभाव दोषों के माध्यम से षड् रिपु प्रकट होते हैं। जिसके कारण साधना से प्राप्त उर्जा स्वभाव दोषों द्वारा निर्मित गलतियों में खर्च हो जाती है। स्वभाव दोष अर्थात चित्त के जन्म-जन्मांतर के संस्कार। वे चित्त में गहराई तक रहते हैं, इसलिए स्वभाव दोष निर्मूलन के लिए प्रयत्न करना अपरिहार्य होता है।
राष्ट्र की दुःस्थिति दूर करने के लिए सुसंस्कारित समाजमन की आवश्यकता – प्रचलित सामाजिक व्यवस्था में अनेक दुर्गुणों का प्रादुर्भाव हो गया है। समस्त देशवासी धर्म एवं नीति भूल गए हैं और इस कारण राष्ट्र का मान सम्मान घटता है। सुव्यवस्थित सामाजिक व्यवस्था के लिए स्वयं के दुर्गुणों का निर्मूलन एवं गुणों का संवर्धन यह समाज के प्रत्येक अंग का प्रथम कर्तव्य है। धर्म एवं जीवन का मेल करके समाजमन संस्कारित करने के लिए एवं समाज के सभी अंगों में आंतरिक एकता निर्मित करने के लिए स्वभाव दोष निर्मूलन तथा गुणों का संवर्धन करना आवश्यक है। इससे ही स्वामी विवेकानंद को अपेक्षित युवा निर्मित होगा एवं सही अर्थों में युवा दिन संपन्न हुआ ऐसे कह सकते हैं।
आपकी विनम्र
श्रीमती कृतिका खत्री,
सनातन संस्था, दिल्ली