
जिस दिन श्री गणेश का पृथ्वी पर पहली बार आगमन हुआ, अर्थात जिस दिन श्री गणेश का जन्म हुआ, वह दिन माघ शुक्ल चतुर्थी था। तभी से गणपति और चतुर्थी का संबंध स्थापित हो गया। माघ शुक्ल चतुर्थी को “श्री गणेश जयंती” के रूप में मनाया जाता है। इस तिथि की विशेषता यह है कि इस दिन श्री गणेश तत्व सामान्य दिनों की तुलना में 1000 गुना अधिक कार्यरत रहता है।
इस दिन गणपति के स्पंदन और पृथ्वी की चतुर्थी तिथि की स्पंदन समान होते हैं, जिससे वे एक-दूसरे के अनुकूल होते हैं। इसका अर्थ है कि इस तिथि को गणपति का तत्व अधिक मात्रा में पृथ्वी पर आता है। प्रत्येक माह की चतुर्थी तिथि को गणेश तत्व सामान्य दिनों की तुलना में अधिक कार्यरत रहता है। इस तिथि पर की गई श्री गणेश की उपासना से गणेश तत्व का अधिकाधिक लाभ प्राप्त होता है।
इस दिन क्या करें ?
1.पूरे दिन आते-जाते और यदि संभव हो तो बैठकर श्री गणेश का नामजप करें। नामजप से भक्तिभाव बढने में सहायता होती है और देवता के तत्व का अधिक लाभ मिलता है।
2.श्री गणेश को लाल फूल और दूर्वा अर्पित करें।
3.श्रद्धा और भक्ति के साथ श्री गणेश की पूजा और आरती करें।
4.घर में श्री गणेश के नामजप की सात्त्विक नामपट्टी लगाएं।
5.यदि संभव हो तो घर के सभी सदस्य एकत्र आकर श्री गणेश स्तोत्र और अथर्वशीर्ष का पाठ करें।
स्तोत्र का अर्थ होता है देवता की स्तुति। श्री गणेश के दो प्रसिद्ध स्तोत्र हैं – संकष्टनाशन स्तोत्र और गणपति अथर्वशीर्ष। जब किसी स्तोत्र का नियमित लय और सुर में पाठ किया जाता है, तो उससे विशेष ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो पाठ करने वाले व्यक्ति के चारों ओर एक सूक्ष्म रक्षा-कवच का निर्माण करती है।
माघी श्री गणेश जयंती पर गणपति की पूजा कैसे करें ?
श्री गणेश पूजा आरंभ करने से पहले निम्नलिखित प्रार्थना करें –
“हे श्री गजानन! इस पूजाविधि के माध्यम से मेरे हृदय में तुम्हारे प्रति भक्ति उत्पन्न हो। इस पूजाविधि से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा को मैं तुम्हारी कृपा से अधिकाधिक ग्रहण कर सकूं।”
श्री गणेश को अनामिका (छोटी उंगली के पास वाली अंगुली) से गंध का तिलक करें।
दाहिने हाथ के अंगूठे और अनामिका अंगुली के चिमटी में पहले हल्दी और फिर कुमकुम लेकर श्री गणेश के चरणों में अर्पित करें। यह मुद्रा भक्तिभाव को जागृत करने में सहायक होती है।
विशेष फूलों में विशेष देवताओं का तत्व आकर्षित करने की क्षमता अन्य फूलों की तुलना में अधिक होती है। श्री गणेश को लाल जास्वंद (गुड़हल) के फूल अर्पित करें, क्योंकि इनमें गणेश तत्व अधिक मात्रा में आकर्षित होता है। यदि लाल जास्वंद उपलब्ध न हो, तो कोई अन्य लाल रंग के फूल चढ़ाएं। फूलों की संख्या 8 या 8 के गुणकों में होनी चाहिए और उनकी रचना शंकरपाळा (शक्करपारा, पारंपरिक मिठाई) जैसा होना चाहिए।
दूर्वा (एक प्रकार की घासवर्ग आयुर्वेदिक वनस्पति) में भी श्री गणेश तत्व को आकर्षित करने की अत्यधिक क्षमता होती है, इसलिए श्री गणेश को दूर्वा अवश्य चढ़ाएं। इससे श्री गणेश का तत्व मूर्ति में अधिक मात्रा में सक्रिय होता है और उपासक को उसका अधिक लाभ प्राप्त होता है। दूर्वा को विषम संख्या (कम से कम 3 या 5, 7, 21 आदि) में अर्पित करें और वे कोमल होनी चाहिए। दूर्वा की पत्तियां भी 3, 5 या 7 की संख्या में होनी चाहिए।
चमेली, चंदन, केवड़ा जैसी सुगंधित अगरबत्तियां श्री गणेश पूजन में उपयोग करें। इनमें से किसी एक सुगंध वाली अगरबत्ती से श्री गणेश को दो बार आरती दिखाएं।
श्री गणेश को हिना की सुगंध वाला इत्र अर्पित करें।
पूजा के बाद “सुखकर्ता दुःखहर्ता…” आरती गाएं। यह आरती संत समर्थ रामदास स्वामी द्वारा रचित है, जिसमें प्राकृतिक रूप से आध्यात्मिक ऊर्जा भरी हुई है, जिसमे चैतन्य है। इसके प्रभाव से उपासक में भक्तिभाव तीव्रता से विकसित होता है।
श्री गणेश को प्रदक्षिणा (परिक्रमा) 8 बार या 8 के गुणकों में करनी चाहिए।
इस प्रकार से शास्त्रों के अनुसार की गई पूजा मन को संतोष देने वाली और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करने वाली होती है।
राष्ट्र और धर्म पर आए संकटों को दूर करके सभी में भक्ति उत्पन्न हो, ऐसी विघ्नहर्ता श्री गणेश से प्रार्थना करें।
संदर्भ: सनातन संस्था का ग्रंथ ‘श्री गणपति’
संकलक :
श्रीमती कृतिका खत्री,
सनातन संस्था