
भगवान परशुराम सप्त चिरंजीवों में से एक हैं। उन्होंने काल पर विजय प्राप्त की है, इसलिए वे आज भी पृथ्वी पर अदृश्य रूप में विद्यमान हैं। उनके स्मरण से पुण्य की प्राप्ति होती है। आज के तनावपूर्ण जीवन में उनका स्मरण मनःशांति, संयम और पराक्रम के लिए प्रेरणादायक है।
परशुराम जन्म से ब्राह्मण थे, लेकिन उन्होंने क्षात्रतेज को भी अपनाया। पितृपक्ष से उन्हें ब्राह्मतेज, ज्ञान और तप की शक्ति मिली, जबकि मातृपक्ष से उन्हें क्षात्रगुण, पराक्रम और निर्भयता मिली। आज के युग में जब गुणों के आधार पर कर्म की बात की जाती है, परशुराम इसका आदर्श उदाहरण हैं।
परशुराम केवल महान योद्धा ही नहीं, अपितु अत्यंत अनुशासित और तपस्वी शिष्य भी थे। उन्होंने कश्यप मुनि और भगवान शिव से ज्ञान प्राप्त किया और तपस्या से दिव्य अस्त्र विद्या अर्जित की। युवाओं को उनके पराक्रम के साथ-साथ साधना और ज्ञानार्जन की भावना भी आत्मसात करनी चाहिए।
“अग्रतः चतुरो वेदाः, पृष्ठतः सशरं धनुः” – इस श्लोक में परशुराम के व्यक्तित्व का सार समाया है। उन्होंने ज्ञान और शौर्य का अनूठा संगम दिखाया। उन्होंने कभी शस्त्र से, तो कभी शाप से अधर्म का नाश किया। आज जब शिक्षा और शौर्य दोनों कम होते जा रहे हैं, तब भगवान परशुराम का आदर्श प्रेरणादायक हो जाता है।
अधर्मी राजा कार्तवीर्य सहस्रार्जुन का पराजय एक ऐसी घटना है जो बताती है कि परशुराम ने पहले तप से उसकी पुण्यशक्ति को क्षीण किया और फिर युद्ध में उसका अंत किया। यह अधर्म के विरुद्ध संघर्ष का विलक्षण उदाहरण है।
जब कार्तवीर्य ने कामधेनु का अपहरण किया, तब परशुराम ने उसे पुनः प्राप्त करने के लिए 21 बार पृथ्वी प्रदक्षिणा कर अधर्मी क्षत्रियों का संहार किया। इससे यह संदेश मिलता है कि धर्म की रक्षा के लिए उठाए गए शस्त्र पवित्र होते हैं।
भगवान परशुराम अत्यंत दानवीर थे। अश्वमेध यज्ञ के उपरांत उन्होंने पूरी भूमि महर्षि कश्यप को दान दी और स्वयं महेन्द्र पर्वत पर निवास करते हुए संन्यास जीवन को अपनाया। आज के युग में जब सत्ता, धन और अहंकार बढ़ता जा रहा है, तब उनका वैराग्य प्रेरणादायक है।
परशुरामभूमि की रचना केवल भौगोलिक नहीं, अपितु आध्यात्मिक नवसृष्टि भी थी। उन्होंने चिता से चित्तपावन ब्राह्मणों की रचना की और धर्मकार्य को नई दिशा दी। वे आंतरिक तेज के माध्यम से सृजनशीलता का महत्त्व सिखाते हैं।
परशुराम भगवान शिव और दत्तात्रेय जैसे अद्वितीय गुरुओं के शिष्य थे। उनसे उन्होंने वेद, आत्मज्ञान, अस्त्र विद्या और योग विद्या सीखी। जब आज की शिक्षा केवल तकनीकी ज्ञान तक सीमित हो गई है, तब परशुराम की गुरुसेवा और समर्पण प्रेरणा देती है।
आज के समाज में जब अन्याय, भ्रष्टाचार और नैतिक पतन बढ़ रहा है, तब परशुराम की शिक्षाएं अत्यंत उपयोगी हैं – कठोर निर्णय लेने का साहस, ज्ञान और शौर्य का समन्वय, गुरु-शिष्य भाव, वैराग्य और राष्ट्रनिष्ठा।
यदि युवा पीढ़ी भगवान परशुराम के गुणों को अपनाए, तो वह शक्तिशाली, विवेकी और निःस्वार्थ बन सकती है। महिलाओं का सम्मान, धर्म की रक्षा, ज्ञान प्राप्ति, संयम और सदाचार को जीवन में उतारकर राष्ट्र के विकास में योगदान दिया जा सकता है।
भगवान परशुराम एक महान योद्धा, पराक्रमी तपस्वी और दूरदर्शी महापुरुष थे। ऐसे ब्राह्म-क्षात्र तेजयुक्त अवतार को शिरोधार्य नमन कर, उनके आदर्शों को जीवन में अपनाना ही उनके प्रति सच्ची भक्ती होगी।