‘जनता स्टोर’ और ‘ढाई चाल’, के लेखक नवीन चौधरी से मुलाकात
‘जनता स्टोर’ और ‘ढाई चाल’, के लेखक नवीन चौधरी से मुलाकात हुई , दोनों किताबें राजनीति के इर्द-गिर्द घूमती हैं और समाज व राजनीति के बदलते पहलुओं पर गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं।
‘जनता स्टोर’ एक ऐसी कहानी है जो राजनीति और समाज की गहराइयों में झांकती है और ‘ढाई चाल’ नवीन का एक और महत्वपूर्ण उपन्यास है, जो भारतीय राजनीति की जटिलताओं और कूटनीतियों पर केंद्रित है। इस मुलाकात में और भी बातें हुई जो एक साक्षात्कार के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत है ।
प्रश्न – बिहार और राजस्थान का संगम है आपकी परवरिश में आपको कौन सा राज्य ज्यादा आकर्षित करता है और क्यों ।
उत्तर: बहुत ही मुश्किल है इसका जवाब देना क्योंकि दोनों राज्यों का अलग योगदान है मेरे जीवन में। बिहार जन्मभूमि है। संस्कृति, शिक्षा को प्राथमिकता, सामाजिक न्याय की सोच और राजनीतिक चेतना वहाँ की मिट्टी में है। यह गुण अपने आप वहाँ से मुझमें आये हैं। राजस्थान वीरों की भूमि है, सांस्कृतिक रूप से यह राज्य भी समृद्ध है। मेरी शिक्षा से लेकर नेतृत्व गुण को विकसित करने में राजस्थान का महत्वपूर्ण योगदान है।
प्रश्न – आपने लेखन की शुरुआत ब्लॉग लेखन से की , उपन्यास लिखने का विचार कब आपने मन में आया और पहला उपन्यास जनता स्टोर लिखते वक्त आपके सामने क्या मुश्किलें आई।
उत्तर: किताब लिखने का विचार कहीं न कहीं मन में तभी से था जब से पापा की पहली किताब आई थी। क्या लिखना है यह मुझे ब्लॉग लिखते वक्त समझ में आने लगा और उपन्यास का विचार मन में आया। पहले उपन्यास का विषय क्या हो यह भी काफी समय तक विचारणीय विषय बना रहा। प्रेम कहानी और छात्र राजनीति के बीच उधेड़बुन थी। अंततः मन में बचपन से बसी सामाजिक और राजनैतिक चेतना का गुण जीता और जनता स्टोर का विचार बना।
यह उपन्यास लिखते समय पहली समस्या थी कि मुझे पता ही नहीं था उपन्यास कैसे लिखा जाता है। बस एक कहानी थी मन में उसे लिखना था। मैंने लिखना शुरू किया और पहले 3 ड्राफ्ट बहुत ही वाहियात बने लेकिन लिखते लिखते मुझे समझ में आने लगा कि मैं कहाँ गलतियाँ कर रहा हूँ और सातवें ड्राफ्ट तक आते हुये कहानी नये रूप में, नई भाषा में बनी।
दूसरी समस्या थी कि राजनीति जैसे विषय में आम पाठक की रुचि बनाये कैसे रखी जाये इसलिये इसमें थ्रिल का हिस्सा जुड़ा।
तीसरी समस्या थी कि जयपुर के एक विश्वविद्यालय की कहानी पूरा देश के हिंदी पाठक क्यों पढ़ेंगे और उससे कैसे जुड़ेंगे। कहानी का जयपुर में होते हुये भी एक यूनिवर्सल अपील होना आवश्यक था और इसके लिये महत्वपूर्ण था कि पात्रों को इस तरह बुना जाये कि सबको लगे कि ऐसा पात्र उनके आसपास है। मैंने वही करने का प्रयास किया।
प्रश्न – दूसरा उपन्यास ढाई चाल लिखने की प्रेरणा , पहले उपन्यास की सफलता से मिली ।
उत्तर: पात्रों को यूनिवर्सल बनाने का मेरा प्रयास रंग लाया और इसके पात्रों से पाठक जुड़ने लगे। उपन्यास खत्म होने के बाद रिव्यू में अलग-अलग पात्रों के लिये प्रेम, घृणा और सहानुभूति का भाव आने लगा। पाठक उनके बारे में ऐसे लिखते जैसे वो उन्हें निजी तौर पर जानते हैं और पात्रों के साथ जो घटना घटी वह उन्हें अपने दोस्त के साथ घटी घटना सी लगने लगी।
मुझे लगातार ईमेल और सोशल मीडिया पर पूछा जाने लगा कि कहानी के मुख्य पात्रों के जीवन में आगे क्या हुआ और यहीं से मुझे लगा कि इन पात्रों को आगे लेकर जाना चाहिये। ढाई चाल की कहानी जनता स्टोर के खत्म होने के 15 साल बाद शुरू होती हैं जहाँ सभी पात्र अपने नये जीवन में हैं लेकिन एक घटना जनता स्टोर के नायक मयूर और उसके प्रतिद्वंदी राघवेंद्र को फिर से आमने-सामने ले आते हैं। मयूर और राघवेंद्र के बीच जो युद्ध अधूरा रह गया था उसे ढाई चाल में पूरा किया गया है।
प्रश्न – दोनों उपन्यास का मूल विषय राजनीति है , इस विषय को चुनने का कोई खास कारण ।
उत्तर: राजनीति से हम चाहे जितनी दूरी बना लें, राजनीति हमारे जीवन में घुसी है। एक राजनीतिक निर्णय हर व्यक्ति के जीवन को बदल सकता है चाहे वह रुचि रखे या न रखे इसलिये राजनीतिक दांव पेंच को जनता को अपने भविष्य के लिये समझना चाहिये। पहला उपन्यास छात्र राजनीति पर था तो वहीं दूसरा उपन्यास राजनीति और मीडिया के घालमेल के साथ सोशल मीडिया द्वारा बनाये जाने वाले नेरेटिव के बारे में है जिन्हें जानना एक नागरिक के लिये आवश्यक है जिससे कि वह किसी का शिकार न बने।
प्रश्न – आप बड़ी कंपनियों के ब्रांड और मार्केटिंग विभाग में कार्य कर चुके है क्या इस विषय पर कोई किताब लिख रहे है ?
उत्तर: ब्रांडिंग पर तो नहीं लेकिन युवाओं के लिये करिअर में सफल होने के लिये एक सेल्फ हेल्प किताब नवंबर 2024 में ‘खुद से बेहतर’ नाम से आ रही है। हमारे देश में युवाओं के पास डिग्री है, उत्साह है, आगे बढ़ने की क्षमता है लेकिन कई बार वह उचित स्किल न होने या उन व्यावहारिक विषयों से चूक जाते हैं जो तरक्की करने में मदद करती है। यह किताब कौशल प्रबंधन, इंटरव्यू की तैयारी, लाइफ स्किल्स, एवं नौकरी में स्थायित्व के मुद्दों पर बात करती है।
प्रश्न – आपके पिता आपके प्रेरणा स्त्रोत रहे है उनकी लेखन शैली को भी आपने अपनाया है ?
उत्तर: पापा अकादमिक लेखक हैं। उनकी किताबें कोर्स एवं रेफ्रन्स की दृष्टि से लिखी गई है। मेरा लेखन कथा का है इसलिये हमारी लेखन शैली पूरी तरह से अलग है। पापा संस्कृत व्याकरण और भाषा पर अकादमिक लिखते हैं और मैं राजनीति, प्रेम और योग्यता पर।
प्रश्न – साहित्यिक उत्सवों में युवा पीढ़ी की भागीदारी और आने वाले समय में हिंदी साहित्य को आप कहां देख पा रहे है ।
उत्तर: हिंदी साहित्य के संवर्धन में युवाओं की भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण है। उनकी साहित्य में भागीदारी ही हिंदी को आगे ले जा सकती है। हिंदी साहित्य का बाजार अभी संक्रमण काल से गुजर रहा है। एक तरफ नौकरी की भाषा अंग्रेजी हो रही है तो दूसरी तरफ हमारी बोलचाल और सपनों की भाषा हिंदी है। नौकरी की दृष्टि से अभिभावक बच्चों को अंग्रेजी सिखा रहे हैं जिसकी वजह से हिंदी किताबों को पढ़ना कम हुआ है किंतु सपनों की भाषा होने की वजह से हिंदी पूर्णतः समाप्त नहीं हो सकती। यदि हम नये विषयों के साथ युवाओं को आकर्षित करने में सफल रहे तो हिंदी के पाठक बने रहेंगे।
साक्षात्कार : अंशु हर्ष