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रिफ सीजन – 11 मायड़ भाषा को समर्पित रहा रिफ का तीसरा दिन

बॉलीवुड की नकल करने के बजाय हमें अपनी सांस्कृतिक समृद्धि सिनेमा में करे प्रस्तुत- वाघले

– मायड़ भाषा को समर्पित रहा रिफ का तीसरा दिन
– 6 से अधिक राजस्थानी फिल्मों का किया गया प्रदर्शन
– ” रीजनल और राजस्थानी भाषा का भविष्य एवं चुनौतियां” विषय पर हुआ टॉक शो

जोधपुर, 02 फरवरी। राजस्थान ट्यूरिज्म एवं मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट के सहयोग से आयोजित हो रहे राजस्थान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के 11वें संस्करण का तीसरा दिन मायड़ भाषा को समर्पित रहा और 6 से अधिक राजस्थानी फिल्मों का प्रदर्शन किया गया जिसकी दर्शकों ने खूब सराहना की। सीमित संसाधनों में फिल्मकारो ने जिस बेहतरीन अंदाज में राजस्थानी कला एवं संस्कृति के साथ-साथ अपनी स्टोरी को प्रदर्शित किया, उसने हर दर्शक को मंत्रमुग्ध कर दिया। सोमवार को “रीजनल एवं राजस्थानी भाषा का भविष्य एवं चुनौतियां” और ” सिनेमा के माध्यम से प्रबंधन” विषय पर टॉक शो का आयोजन किया गया, जिसमें विषय विशेषज्ञों ने खुलकर अपने विचार रखें। रीजनल एवं राजस्थानी भाषा का भविष्य एवं चुनौतियां विषय पर आयोजित टॉक शो में अरविंद वाघले ने अपने विचार रखते हुए कहा कि राजस्थान में कला और कलाकारों की कोई कमी नहीं है, और यह विविधता फिल्मों में भी प्रदर्शित होनी चाहिए। हालांकि, बॉलीवुड की नकल करने के बजाय हमें अपनी सांस्कृतिक समृद्धि को सिनेमा में प्रस्तुत करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए। वहीं ख्यातिनाम फिल्म निर्माता एवं निदेशक कोमल कोठारी के योगदान को याद किया गया। उन्होंने दस हजार से अधिक लोक कहानियों का संकलन किया और उन्हें पुनः लिखने का भी प्रयास किया। उनके इस अभूतपूर्व कार्य के कारण प्रकाश झा और मणि कौल जैसे प्रतिष्ठित फिल्म निर्देशक भी उनसे सलाह लेते थे। जब भाषाई पहचान की बात होती है, तो कोमल कोठारी के संकलनों का उल्लेख अवश्य किया जाता है। राजस्थान की लोक कहानियां अत्यंत समृद्ध हैं, लेकिन आज के दौर में लोग पढ़ने की तुलना में वीडियो और विजुअल फॉर्मेट को अधिक पसंद कर रहे हैं। हालांकि, स्टोरी टेलिंग की परंपरा आज भी प्रचलित है। हेमन्त सिरवी ने कहा कि फिल्मों के माध्यम से संस्कृति को बढ़ावा देना प्रमुख उद्देश्य है। सिनेमा के जरिए अपनी संस्कृति को संरक्षित और प्रचारित किया जाना चाहिए। वर्तमान में प्रतिवर्ष 10 से 15 राजस्थानी फिल्में बन रही हैं, लेकिन अगर सरकार का उचित सहयोग मिले, तो निश्चित रूप से राजस्थानी सिनेमा के स्वर्णिम दिन लौट सकते हैं। पैनल सदस्य अभिमन्यु ने कहा कि ऐसा माना जाता है कि राजस्थानी फिल्मों को दर्शक नहीं मिलते, लेकिन सच्चाई यह है कि ये फिल्में दर्शकों तक सही तरीके से पहुंच ही नहीं पातीं। सिनेमाघरों की भीड़ से अधिक महत्वपूर्ण यह है कि राजस्थानी फिल्मों को उचित सम्मान और पहचान मिले।टॉक शो के पैनल सदस्य देवेंद्र सिंह कहा कि जब तक भाषा को मज़बूती नहीं मिलेगी, तब तक वहाँ के लोग राजभाषा से जुड़े नहीं रह पाएंगे। हेमंत सिवरी (अभिनेता एवं निर्देशक) ने कहा कि “राजस्थान की कई लोकेशन, यहाँ की संस्कृति और परिधान मेरी फिल्मों में अहम योगदान देते हैं। सोशल मीडिया पर जो दिखता है, युवा उसी को फॉलो करते हैं। हम राजस्थानी भाषा में फिल्में बनाएंगे और दर्शकों को जोड़ेंगे। हमें सरकार का समर्थन चाहिए ताकि एक दिन राजस्थानी सिनेमा को एक बेहतरीन पहचान मिले।” वहीं विजय कुमार (निर्देशक, ‘Plot No. 302’) ने कहा कि “लोग कहते थे कि राजस्थानी सिनेमा नाम की कोई चीज़ नहीं है, यह बात मुझे दिल में चुभती थी। मैंने एक प्रयास किया और ‘तावड़ा’ फिल्म बनाई। पहले लोगों को राजस्थानी बोलने में शर्म आती थी।पैनल सदस्य अरविंद कुमार ने बताया कि “राजस्थान में कला और कलाकारों की कोई कमी नहीं है, मैं मुंबई में भी राजस्थान को जीता हूँ। हम राजस्थान में फिल्में बनाते हैं लेकिन टारगेट सलमान खान को करते हैं, हम गलत दर्शकों को टारगेट कर रहे हैं।”
अभिनेत्री सुष्मिता (झारखंड, ‘Atta 1, Atta 2’ अभिनेत्री) ने कहा कि “यहाँ बजट बहुत कम होता है, इसलिए निर्देशक कम संसाधनों में भी काम निकाल लेते हैं।” दिनेश कुमार ने बताया कि (जोधपुर, ‘Aawakara’): “बिना प्रमोशन के फिल्म नहीं चलती, स्क्रीन पर भी पैसे देने पड़ते हैं।” वहीं अभिमन्यु (अजमेर, फिल्म निर्माता) ने बताया कि “थिएटर में बहुत कम फिल्में चल रही हैं। किसी भी भाषा में फिल्म बनाते समय, थिएटर भरने पर ध्यान देने के बजाय यह देखना ज़रूरी है कि फिल्म अच्छी हो, क्योंकि अच्छी फिल्म होगी तो लोग खुद आएंगे। भाषा महत्वपूर्ण है, लेकिन हमें अपने क्राफ्ट का भी सही इस्तेमाल करना होगा। अगर हम फिल्मों की संख्या बढ़ाएँ और उन्हें ओटीटी पर अपलोड करें, तो धीरे-धीरे दर्शक भी बढ़ेंगे।”

फिल्म में बेहतर प्लानिंग और मैनेजमेंट होना आवश्यक
रिफ के तीसरे दिन सोमवार को लाइट कैमरा लीडरशिप मैनेजमेंट विषय पर भी टॉक शो हुआ जिसे शिव जोशी ने होस्ट किया। इस विषय पर विचार रखते हुए चार्ल्स ने कहा कि किसी भी फिल्म निर्माण से पहले उसकी प्लानिंग और मैनेजमेंट होना बहुत आवश्यक है। बेहतर प्लानिंग होने से न केवल फिल्म बेहतर बनाती है, बल्कि उसकी कॉस्ट भी काफी कम होती है। फिल्म प्लानिंग में सबसे पहले बेहतर शूटिंग स्थल का चयन किया जाए, साथ ही राज्य और केंद्र सरकार की ओर से दी जाने वाली विभिन्न सब्सिडी के संबंध में भी पूरी जानकारी लेनी चाहिए, ताकि उसका भी लाभ लिया जा सके। चार्ल्स ने कहा कि कोई भी व्यक्ति अनुपयोगी नहीं होता है, जरूरत है उसकी क्षमता को पहचानते हुए उसका बेहतर उपयोग करना और यही एक मैनेजमेंट से जुड़े व्यक्ति का गुण होता है।

आज इन फिल्मों का हुआ प्रदर्शन

फाउंडर रिफ अंशु हर्ष ने बताया कि सोमवार को विशेष रूप से राजस्थानी फिल्मों की स्क्रीनिग की गई और 6 से अधिक फिल्मों का प्रदर्शन हुआ, जिन्हें दर्शकों ने काफी पसंद किया। जिनमें छोटी सी उमर, आवकारा, ए सीक्रेट प्लेग्राउंड ”, “रिश्ते” (वेब सीरीज़), “रोटेन सोसाइटी, “टोकरी”, “दो चार दाने: गुटखा की लत और उसके विनाशकारी परिणाम”, “शिकार” , “Her fear, “आटा-2: , “मैं थांसु दूर नहीं, चौधराइन , ट्रेवलिंग थ्रू थे इम्पॉसिबल रोड का प्रदर्शन किया गया।

छोटी सी उमर”

यह वीडियो एक राजस्थानी परिवार की कहानी दर्शाती है, जहाँ माँ एक बेटी को जन्म देती है। पहली नजर में ही पिता की दुनिया रोशन हो जाती है। कुछ साल बाद, बेटी बचपन में खेलती हुई नजर आती है, उसके माता-पिता भी उसके साथ खेलते हैं। जैसे-जैसे वह बड़ी होती है, वह अपने पिता की राजकुमारी बन जाती है।फिर उसकी शादी का दिन आता है। वह उदास है क्योंकि उसे अपना घर छोड़ना पड़ रहा है और उसने अपने पिता को शादी के लिए कर्ज लेते हुए देखा है। रस्में चल रही हैं, लेकिन उसकी भावनाएँ उमड़ रही हैं, और वह आंसुओं को रोकने की कोशिश कर रही है। तभी पिता उसकी बचपन की घोड़े वाली खिलौना लाते हैं, जिसे देखते ही उसकी भावनाएँ बंधन तोड़ देती हैं, और वह रो पड़ती है। पिता उसे गले लगाते हैं और सांत्वना देते हैं।

“आवकारा”

चार बचपन के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं। उनमें से एक बहुत ही समझदार, ज़िम्मेदार और नेकदिल इंसान होता है, जिसकी कोई बुरी आदत नहीं होती। बाकी तीन दोस्त तमाम बुरी आदतों से घिरे होते हैं – शराब पीना, धूम्रपान, अनैतिक संबंध और गैर-ज़िम्मेदाराना व्यवहार। वे तीनों मिलकर उस एक दोस्त को अपने जैसा बनाने की योजना बनाते हैं और उसे बदलने के लिए तरह-तरह के तरीके अपनाते हैं। लेकिन इसके बाद उनकी ज़िंदगी कैसे बदलती है, यही कहानी का सार है।

शिक्षा: कोई भी आपकी आदतें और व्यवहार तब तक नहीं बदल सकता, जब तक आप खुद उन्हें बदलने का फैसला न करें।

“ ए सीक्रेट प्लेग्राउंड ”

सुबह एक लड़का शिउली के फूल लेकर पंडाल जाता है, लेकिन मूर्तियाँ गायब पाकर चौंक जाता है। हँसी की आवाज़ सुनकर वह देखता है कि माँ दुर्गा और उनके बच्चे लुका-छिपी खेल रहे हैं। माँ दुर्गा उसे भी खेलने के लिए बुलाती हैं। बाद में, जब उसकी माँ उसे लेने आती है, तो वह देखता है कि मूर्तियाँ अपनी जगह पर हैं—गणेश जी आँख मारते हुए, जैसे उनका राज़ बना रहे।

“रिश्ते” (वेब सीरीज़) – निर्देशक बी.एम. व्यास (थिएटर सेल, जेएनवीयू जोधपुर)

यह वेब सीरीज़ मानवीय संबंधों की जटिलताओं को दर्शाती है। कहानी में विभिन्न रिश्तों की गहराई, संघर्ष और भावनाओं को खूबसूरती से पेश किया गया है। हर एपिसोड में रिश्तों के अलग-अलग पहलुओं को उजागर किया जाता है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देता है।

“रिश्ते”

यह दिखाता है कि भावनाएँ, समय और परिस्थितियाँ कैसे संबंधों को बदलती हैं, लेकिन सच्चे रिश्ते हमेशा बने रहते हैं।

“रोटेन सोसाइटी ”

सड़ी हुई समाज एक प्रयोगात्मक सामाजिक व्यंग्य फिल्म है। यह फिल्म एक न्यूज़ रिपोर्टर और उसके डिजिटल कैमरे के गायब होने के इर्द-गिर्द घूमती है। इस कैमरे में एक राजनीतिक साजिश और हत्या की रिकॉर्डिंग होती है। एक पागल आदमी इस कैमरे को पाता है और समाज में घट रही कुछ और दिलचस्प घटनाओं को रिकॉर्ड करता है।

“टोकरी”

डॉक्यूमेंट्री “टोकरी” लोहारों और मालधारी समुदाय के बीच की परस्पर साझेदारी को दर्शाती है। लोहार उन विशेष घंटियों का निर्माण करते हैं जो मालधारी समुदाय के पशुओं के गले में बंधी होती हैं। यह फिल्म कच्छ, गुजरात के सांस्कृतिक रूप से समृद्ध और सुरम्य परिवेश में स्थित है। फिल्म में बताया गया है कि कैसे ये घंटियों की अनोखी ध्वनि इस साझेदारी और पशुओं के साथ उनके गहरे संबंध का प्रतीक है।

“दो चार दाने: गुटखा की लत और उसके विनाशकारी परिणाम”

“दो चार दाने” एक जिद्दी आदमी कमल की कहानी है, जिसे पेट में गैस की समस्या होती है। अपने दोस्त की सलाह पर, वह गुटखा के कुछ दाने खाना शुरू करता है। ये दो-चार दाने धीरे-धीरे उसकी आदत बन जाते हैं। परिवार के मना करने के बावजूद, वह गुटखा खाना नहीं छोड़ता। एक दिन उसे कैंसर हो जाता है, और इसके कारण उसके परिवार को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह शॉर्ट फिल्म इसी कहानी को दर्शाती है।

“शिकार”
असम के एक चाय बागान में काम करने वाले शंकर की कहानी है, जो अपनी प्रेमिका अष्टमी की निर्मम हत्या का बदला लेने के लिए लंदन की एक खतरनाक यात्रा पर निकलता है। अमीर मेहमानों द्वारा किए गए हमले और बागान प्रबंधन द्वारा चुप कराने के बाद, शंकर गहरे दुःख और गुस्से से भरा हुआ अपने दोस्त रफीक के साथ लंदन पहुंचता है। वे अपराधियों का पता लगाने की चुनौतियों का सामना करते हैं। एक रोमांचक चरमोत्कर्ष में, शंकर अन्याय के खिलाफ लड़ते हुए न्याय की जीत सुनिश्चित करता है और कहानी बागान की भ्रष्ट प्रबंधन पर एक चौंकाने वाले खुलासे के साथ समाप्त होती है।

“Her fear : एक मनोवैज्ञानिक यात्रा और PTSD का कड़वा सच”

शालिनी का जीवन एक भयावह हमले से गहराई तक प्रभावित हो जाता है, जिससे उबरने की उसकी कोशिशें उसके लिए एक डरावने सपने में बदल जाती हैं। उसके चारों ओर का संसार भय और परनोइया से भर जाता है। जैसे-जैसे उसका PTSD (पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) बढ़ता है, वह अपने हमलावर की जीवंत और भयावह छवियों को अपने दिमाग में बार-बार देखने लगती है। वास्तविकता और भ्रम के बीच की रेखाएं धुंधली हो जाती हैं, और वह डर और अलगाव की एक दमघोंटू स्थिति में फंस जाती है।

“उसका डर” एक गहरी मनोवैज्ञानिक कहानी है, जो हिंसा के लंबे समय तक प्रभाव और पीड़ितों पर इसके मानसिक प्रभाव को उजागर करती है। फिल्म की भयावह छव

“आटा-2: एक मां और बेटी की संघर्षमय कहानी”

यह फिल्म एक समर्पित मां की मार्मिक कहानी बताती है, जो अपनी और अपनी बेटी की जिंदगी बचाने के लिए एक कठिन संघर्ष का सामना करती है। इस दौरान, वे एक भयावह राक्षस का सामना करते हैं, जो मां के अतीत से गहराई से जुड़ा होता है। उनकी यह संघर्षपूर्ण यात्रा दिल को छू लेने वाली और अत्यधिक प्रेरणादायक है, जो दर्शकों को बांध कर रखती है।

“मैं थांसु दूर नहीं: महाराजा हनवंत सिंह की विरासत पर आधारित डॉक्यूमेंट्री”

“मैं थांसु दूर नहीं” डॉक्यूमेंट्री में स्वर्गीय महाराजा हनवंत सिंह (1923-1952) की असाधारण जीवन यात्रा को बड़ी बारीकी से प्रस्तुत किया गया है। वे जोधपुर (मारवाड़) के अंतिम शासक महाराजा थे। यह फिल्म राठौड़ वंश की वीरता और जोधपुर की जीवंत सांस्कृतिक धरोहर के साथ गहराई से जुड़ी हुई है। यह कहानी उस समय को भी दर्शाती है जब भारत ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता की दहलीज पर था और महाराजा ने अपने प्रिय शहर के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया।

चौधराइन – संक्षिप्त सारांश

चौधरी तेजपाल सिंह, अपनी सुंदर पत्नी के बावजूद, परिवार पर ध्यान नहीं देते और मौज-मस्ती में लिप्त रहते हैं। वे अक्सर मुन्नी बाई के कोठे पर जाते हैं। एक दिन, किन्नर केसर बाई उन पर नजर डालती है और उनके मुनीम को रिश्वत और धमकी देकर चौधरी को अपने पास बुलाने के लिए मजबूर करती है। धीरे-धीरे, केसर बाई चौधरी से प्रेम करने लगती है। जब चौधराइन को इस बारे में पता चलता है, तो वह केसर बाई को अपने रास्ते से हटा देती है और चौधरी को हवेली से बाहर निकाल देती है।

ट्रेवलिंग थ्रू थे इम्पॉसिबल रोड

एक दृढ़ निश्चयी युवा कॉलेज छात्र नया देश अपनाता है, माता-पिता में से एक को खो देता है, और परिवार को आनुवंशिक घातक बीमारी का सामना करना पड़ता है। कठिनाइयों के बावजूद हार नहीं मानता। जीवन मशीनों पर निर्भर हो जाता है, परिवार में छह अंग प्रत्यारोपण होते हैं, फिर भी मानवता की सेवा के लिए दुनिया भर में यात्रा जारी रखता है। भूले-बिसरे लोगों की मदद करता है, हर इंसान के जीवन को समान मूल्यवान मानता है।

अब वह एक दाता अंग के साथ, अपनी खूबसूरत पत्नी और प्यारे बच्चों के साथ ग्रेटर बॉस्टन में सुखपूर्वक रहता है। अपने ही लोगों की गलतफहमियां और विश्वासघात उसकी जिंदगी को तोड़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन उसका दृढ़ संकल्प और साहस उसे हर चुनौती से उबार देता है।

टॉक शो के पैनल सदस्य देवेंद्र सिंह कहा कि जब तक भाषा को मज़बूती नहीं मिलेगी, तब तक वहाँ के लोग राजभाषा से जुड़े नहीं रह पाएंगे। हेमंत सिवरी (अभिनेता एवं निर्देशक) ने कहा कि “राजस्थान की कई लोकेशन, यहाँ की संस्कृति और परिधान मेरी फिल्मों में अहम योगदान देते हैं। सोशल मीडिया पर जो दिखता है, युवा उसी को फॉलो करते हैं। हम राजस्थानी भाषा में फिल्में बनाएंगे और दर्शकों को जोड़ेंगे। हमें सरकार का समर्थन चाहिए ताकि एक दिन राजस्थानी सिनेमा को एक बेहतरीन पहचान मिले।” वहीं विजय कुमार (निर्देशक, ‘Plot No. 302’) ने कहा कि “लोग कहते थे कि राजस्थानी सिनेमा नाम की कोई चीज़ नहीं है, यह बात मुझे दिल में चुभती थी। मैंने एक प्रयास किया और ‘तावड़ा’ फिल्म बनाई। पहले लोगों को राजस्थानी बोलने में शर्म आती थी।पैनल सदस्य अरविंद कुमार ने बताया कि “राजस्थान में कला और कलाकारों की कोई कमी नहीं है, मैं मुंबई में भी राजस्थान को जीता हूँ। हम राजस्थान में फिल्में बनाते हैं लेकिन टारगेट सलमान खान को करते हैं, हम गलत दर्शकों को टारगेट कर रहे हैं।” अभिनेत्री सुष्मिता (झारखंड, ‘Atta 1, Atta 2’ अभिनेत्री) ने कहा कि “यहाँ बजट बहुत कम होता है, इसलिए निर्देशक कम संसाधनों में भी काम निकाल लेते हैं।” दिनेश कुमार ने बताया कि (जोधपुर, ‘Aawakara’): “बिना प्रमोशन के फिल्म नहीं चलती, स्क्रीन पर भी पैसे देने पड़ते हैं।” वहीं अभिमन्यु (अजमेर, फिल्म निर्माता) ने बताया कि “थिएटर में बहुत कम फिल्में चल रही हैं। किसी भी भाषा में फिल्म बनाते समय, थिएटर भरने पर ध्यान देने के बजाय यह देखना ज़रूरी है कि फिल्म अच्छी हो, क्योंकि अच्छी फिल्म होगी तो लोग खुद आएंगे। भाषा महत्वपूर्ण है, लेकिन हमें अपने क्राफ्ट का भी सही इस्तेमाल करना होगा। अगर हम फिल्मों की संख्या बढ़ाएँ और उन्हें ओटीटी पर अपलोड करें, तो धीरे-धीरे दर्शक भी बढ़ेंगे।”

फिल्म में बेहतर प्लानिंग और मैनेजमेंट होना आवश्यक
रिफ के तीसरे दिन सोमवार को लाइट कैमरा लीडरशिप मैनेजमेंट विषय पर भी टॉक शो हुआ जिसे शिव जोशी ने होस्ट किया। इस विषय पर विचार रखते हुए चार्ल्स ने कहा कि किसी भी फिल्म निर्माण से पहले उसकी प्लानिंग और मैनेजमेंट होना बहुत आवश्यक है। बेहतर प्लानिंग होने से न केवल फिल्म बेहतर बनाती है, बल्कि उसकी कॉस्ट भी काफी कम होती है। फिल्म प्लानिंग में सबसे पहले बेहतर शूटिंग स्थल का चयन किया जाए, साथ ही राज्य और केंद्र सरकार की ओर से दी जाने वाली विभिन्न सब्सिडी के संबंध में भी पूरी जानकारी लेनी चाहिए, ताकि उसका भी लाभ लिया जा सके। चार्ल्स ने कहा कि कोई भी व्यक्ति अनुपयोगी नहीं होता है, जरूरत है उसकी क्षमता को पहचानते हुए उसका बेहतर उपयोग करना और यही एक मैनेजमेंट से जुड़े व्यक्ति का गुण होता है।

चौथे दिन इन फिल्मों की होगी स्क्रीनिंग
डायरेक्टर रिफ सोमेंद्र हर्ष ने बताया कि रिफ के चौथे दिन मंगलवार को सुबह 8:30 – द लीजेंड ऑफ हनुमान (ऐनिमेशन वेब सीरीज़) सुबह 8:50 – जहांकिल्ला, मास्टरक्लास
सुबह 11:05 – विषय: टीबीए (घोषित किया जाना है), संगीत एल्बम और फिल्में
सुबह 11:30 – उठो म्हारा बाल मुकुंद (संगीत एल्बम), सुबह 11:35 – द लास्ट रायट
दोपहर 12:10 – चंबल पार, दोपहर 3:15 – वेलोचप्पाडु (द रिवीलर ऑफ लाइट), दोपहर 3:45 – बुश (लघु ऐनिमेशन फिल्म), दोपहर 3:55 – बाज़ इन बिहार, शाम 6:40 – एन अनघा विश्वनाथन क्लिशे, शाम 7:10 – हरि का ओम
रात 9:10 – हर शेअर ऑफ स्काई, रात 9:45 – स्वैग (तेलुगु) का प्रदर्शन होगा। वहीं ओपन फोरम (टॉक शो) में दोपहर 2:30 सिनेमा के माध्यम से पर्यटन, निवेश और संस्कृति को बढ़ावा देना” विषय पर होगा।

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