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भक्ति और शक्ति का सुंदर संगम : श्री हनुमान

हर वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन श्रीहनुमान जन्मोत्सव मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार, इस वर्ष हनुमान जन्मोत्सव 12 अप्रैल 2025 को मनाया जाएगा। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, बजरंगबली बहुत बलवान और निडर है। उनके समक्ष कोई भी शक्ति टिक नहीं पाती है। इसके अलावा हनुमान जी जल्द प्रसन्न होने वाले देवता हैं, उनकी कृपा से कार्यों में आ रही बाधाएं जल्द दूर होने लगती है।
मनोजवम् मारुत तुल्य वेगम्,
जितेंद्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथ मुख्यम,
श्रीराम दूतम शरणं प्रपद्ये ॥
अर्थात् वायु के समान गतिशील, इंद्रियों पर विजय प्राप्त करनेवाले, बुद्धिमानों में श्रेष्ठ, वायुपुत्र, वानर समूह के अधिपति और श्रीराम के दूत ऐसे मारुति के मैं शरण में आया हूं ।
इस श्लोक के माध्यम से मारुति नाम से भी विख्यात हनुमान जी के अतुलनीय गुण विशेषताओं का परिचय मिलता है । छोटों से लेकर बड़ों तक सभी को अपने लगनेवाले भगवान “मारुति ” ! मारुति यह सर्वशक्तिमान महापराक्रमी, महाधैर्यवान, सर्वोत्कृष्ट भक्त, महान संगीतज्ञ के रूप में भी प्रसिद्ध हैं । जीवन को परिपूर्ण करने के लिए जिन-जिन गुणों की आवश्यकता रहती है, उन सभी गुणों के प्रतीक अर्थात मारुति । शक्ति, भक्ति, कला, चतुराई और बुद्धिमता इनमें श्रेष्ठ होकर भी भगवान रामचंद्र की चरणों में हमेशा समर्पित रहनेवाले मारुति जी के जन्म का इतिहास और उनकी कुछ गुण-विशेषताएं इस माध्यम से जान लेते हैं ।
*जन्म का इतिहास*: राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए ‘पुत्रकामेष्टी’ यज्ञ किया । तब उस यज्ञ से अग्नि देव ने प्रकट होकर दशरथ जी के रानियों के लिए पायस (खीर) प्रदान की । अंजनी को भी दशरथ की रानियों के समान तपश्चर्य द्वारा पायस प्राप्त हुआ था; इसी प्रसाद के प्रभाव से मारुति जी का जन्म हुआ । उस दिन चैत्र पूर्णिमा थी । वह दिन ‘हनुमान जयंती’ के रूप में मनाया जाता है । वाल्मीकि रामायण के (किष्किंधा कांड 66वे सर्ग) में हनुमान जी की जन्म कथा इस प्रकार वर्णित है । माता अंजनी के गर्भ से हनुमान जी का जन्म हुआ। जन्म लेते ही उगते सूर्य बिंब को पका फल समझ हनुमान जी ने आकाश में उसकी ओर उड़ान भरी, पर्व तिथि होने के कारण उस दिन सूर्य को निगलने के लिए राहु आया था । सूर्य की ओर बढ़नेवाला हनुमान यह दूसरा राहु ही है यह समझ कर इंद्र ने उनपर वज्र फेंका । जो उनकी ठोड़ी को चीरता हुआ चला गया इस कारण उनको ‘हनुमान’ यह नाम दिया गया ।
कार्य और विशेषताएं :
*सर्वशक्तिमान*: सभी देवताओं में केवल हनुमान जी ही ऐसे देवता हैं जिनको अनिष्ट शक्तियां कष्ट नहीं पहुंचा सकती । लंका में लाखों राक्षस थे फिर भी वह हनुमान जी को कोई कष्ट नहीं पहुंचा पाए । जन्म लेते ही हनुमान जी ने सूर्य को निगलने के लिए उड़ान भरी ऐसी जो गाथा है, इससे यह ध्यान में आता है की वायु पुत्र हनुमान जी ने सूर्य पर विजयप्राप्त की । पृथ्वी, आप, तेज, वायु और आकाश इन तत्वों में वायु तत्व, तेजतत्व की अपेक्षा अधिक सूक्ष्म अर्थात अधिक शक्तिमान है ।
*भक्त*: दास्य भक्ति के सर्व उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में आज भी हनुमान जी की राम भक्ति का ही उदाहरण दिया जाता है । वे अपने प्रभु के लिए प्राणों को अर्पण करने के लिए भी सदैव तत्पर रहते थे । उनकी सेवा के आगे उनको शिव तत्व और ब्रह्म तत्व की इच्छा भी कौड़ी के मोल लगती थी । हनुमान अर्थात सेवक और सैनिक इन दोनों का सम मिश्रण ही है !
*बुद्धिमान*: व्याकरण सूत्र, सूत्र वृत्ति, वार्तिक, भाष्य और संग्रह इन सब में मारुति जी की बराबरी करनेवाला कोई भी नहीं था । उत्तम राम चरित्र में (36.44.46) मारुति जी को 11वां व्याकरणकार मानते हैं ।
*मानस शास्त्र में निपुण और राजनीति में कुशल*: अनेक प्रसंगों में सुग्रीव आदिवानरों के साथ ही साथ भगवान श्रीराम जी ने भी उनका परामर्श माना है । रावण को छोड़कर आए विभीषण को अपने पक्ष में नहीं लेना चाहिए, ऐसा अन्य सैनिकों का विचार था परंतु मारुति जी ने ”उन्हें अपने पक्ष” में लेना चाहिए ऐसा बताया और वह भगवान श्रीराम जी ने मान्य किया । लंका में सीता जी से प्रथम भेंट के समय उनके मन में स्वयं के विषय में विश्वास निर्माण करने, शत्रु पक्ष के पराभव के लिए लंका दहन करने, राम जी के आगमन को लेकर भरत जी की भावना जानने के लिए, राम जी ने उन्हीं को भेजा इससे उनकी बुद्धिमत्ता और मानसशास्त्र में निपुणता का पता चलता है । लंका दहन के द्वारा उन्होंने रावण की प्रजा का रावण के बल पर जो विश्वास था उसको डगमगा दिया ।
*जितेंद्रिय*: सीता जी की खोज में जब हनुमान जी रावण के अंत:पुर में गए थे तब उनकी मन की स्थिति उनके उच्च चरित्र का द्योतक है । उस समय वे स्वयं कहते हैं, स्वच्छंदता से लेटी हुई सभी रावण स्त्रियों को देखने के पश्चात भी मेरे मन में विकार उत्पन्न नहीं हुआ। वाल्मीकि रामायण, सुंदरकांड में अनेक संतों ने जितेंद्रिय ऐसे हनुमान जी की पूजा करके उनका आदर्श समाज के सामने रखा है । जितेंद्रिय होने के कारण ही मारुति इंद्रजीत को हरा सके ।
*साहित्य, तत्वज्ञान और अभिव्यक्ति कला में निपुण*: रावण के दरबार में उनका भाषण उनकी अभिव्यक्ति का उत्कृष्ट नमूना है ।
*संगीत शास्त्र के प्रवर्तक*: हनुमान जी को संगीत शास्त्र का एक प्रमुख प्रवर्तक माना गया है । समर्थ रामदास स्वामी जी ने उनको ‘संगीत ज्ञान महंता ‘ संबोधित किया है ।
*चिरंजीव*: हनुमानजी को चिरंजीवी भी कहा जाता है। चिरंजीवी यानी की अजर-अमर। कहा जाता है कि वे आज भी पृथ्वी पर सशरीर मौजूद हैं, और अपने भक्तों की परेशानियों को सुनते हैं और उनके संकटों को हरते हैं
*मूर्ति विज्ञान : मारुति और वीर मारुति* : हनुमान जी के दास मारुति और वीर मारुति ऐसे दो रूप है । दास मारुति राम जी के आगे हाथ जोड़कर खड़े रहते हैं । उनकी पूंछ जमीन पर रहती है । वीर मारुति हमेशा युद्ध के लिए सज्ज रहते हैं । उनकी पूंछ ऊपर की ओर खड़ी और सीधा हाथ मस्तक की ओर मुड़ा रहता है ।
*पंचमुखी हनुमान*: पंचमुखी हनुमान की मूर्ति अत्यधिक मात्रा में दिखाई देती है । गरुड़, वराह, हयग्रीव, सिंह और कपि मुख यह पांच मुख होते हैं । इन 10 भुजी मूर्तियों के हाथ में ध्वज ,खड्ग, पाश इत्यादि शस्त्र होते हैं । पंचमुखी देवता का एक अर्थ यह है कि पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण यह 4 और उर्ध्व दिशा इन पांचों दिशाओं में उन देवता का ध्यान है या उन दिशाओं पर उनका आधिपत्य है ।
*दक्षिण मुखी हनुमान*: दक्षिण शब्द दो अर्थों में प्रयोग में लाया जाता है । एक अर्थात दक्षिण दिशा और दूसरा अर्थात दायीं बाजू । गणपति और हनुमान इनकी सुषुम्ना नाड़ी हमेशा कार्यरत रहती है परंतु रूप बदलने पर थोड़ा बदलाव होकर उनकी सूर्य या चंद्र नाड़ी कम मात्रा में कार्यरत होती है ।
*शनि की साढ़ेसाती और हनुमान पूजा*: शनि की साढ़ेसाती होने पर उसका कष्ट कम करने के लिए हनुमान जी पूजा की जाती है ।
संदर्भ – सनातन संस्था का प्रकाशन ‘श्री हनुमान’
आपकी विनम्र
श्रीमती कृतिका खत्री
सनातन संस्था, दिल्ली

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