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साधना की परिपक्वता को निहारने का अदभुत क्षण था वो 16 वां रघु सिन्हा स्मृति समारोह ( जन्म शताब्दी समारोह )

साधना की परिपक्वता को देख कर मन अभिभूत था , बिड़ला सभागार खचाखच भरा हुआ और सभी मंत्र मुग्ध हो कर हरी प्रसाद चौरसिया जी को देख रहे थे। श्रुति मंडल द्वारा 16 वा रघु सिन्हा स्मृति समारोह आयोजित हो रहा था , और ये साल रघु सिन्हा का जन्मशती वर्ष है । हरि प्रसाद जी भी जयपुर की धरती पर आ कर उन दो दिव्य जनों रघु सिन्हा और प्रकाश सुराणा  को याद कर रहे थे जिन्होंने शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र को श्रुति मंडल के माध्यम से आम जन तक पहुंचाने का प्रयास बरसों पहले शुरू किया था और अब उनकी भावी पीढ़ियां इसको आगे बढ़ा रही है ।

हरी  स्वयं बांसुरी ले कर आपके सामने बैठे हो उस दृश्य की कल्पना कर के देखिए शरीर रोमांचित मन उत्साहित और आंखों में जल भर आएगा । ऐसी ही अनुभूति थी जब यह अदभुत दृश्य देखा जब हरी  स्वयं बांसुरी की मधुर तान सुना रहे थे । क्योंकि बांसुरी सिर्फ कला जगत ही नहीं बल्कि आध्यात्मिकता के भी उतने ही करीब है ये बात सर्व मान्य है।  कृष्ण और बांसुरी को अलग नहीं देखा जा सकता इसके कहते है द्धापर युग में देवता श्री कृष्ण से मिलने गए तो कुछ भेंट ले जाना चाहते थे महादेव  को याद आया कि उनके पास ऋषि दधीचि की महाशक्तिशाली हड्डी पड़ी है। ऋषि दधीचि वही महान ऋषि है जिन्होंने धर्म के लिए अपने शरीर को त्याग दिया था व अपनी शक्तिशाली शरीर की सभी हड्डियां दान कर दी थी। शिवजी ने उस हड्डी को घिसकर बांसुरी का निर्माण किया।
हरि के करों में बांसुरी हरि ही देवे सांस 
मंत्र मुग्ध हो कर ध्यान लगा , बस तेरी ही आस 
उस सभागार में हरी  बांसुरी बजा रहे थे और वहीँ बैठे हुए ये शब्द उस लय के साथ मेरे मन से होते हुए मेरी कलम के माध्यम से कागज़ पर उतर रहे थे राग यमन के साथ कार्यक्रम शुरू हुआ  यह राग शांत, मनमोहक, और मधुर लगता है और इसका भाव शांति, प्रेम, और आनंद देने वाला होता है। सांसों की माला पर जब बांसुरी बजाई जाती है उस भाव को प्रकट करने के लिए शब्द पर्याप्त नहीं होते। पद्म विभूषण श्री हरी प्रसाद चौरसिया जी को जब ये कहा गया कि उन्हें देख कर ऐसा लग रहा है जैसे स्वयं साक्षात भगवान् श्री कृष्ण बांसुरी बजा रहे है तो उन्होंने बहुत ही भावपूर्ण वाणी से कहा , ” आप मुझे नर्वस कर रहे है , उनके जैसे होने में कई जन्म लग जायंगें। लेकिन मैं उनके जैसा होना चाहता हूँ अभी बहुत मेहनत लगेगी ” , उनका ये कथन बहुत प्रेम भाव में डूबा हुआ था। कार्यक्रम समय के पंखों के साथ अपनी उड़ान पर था और वो लय वो ताल , वो साधना की परिपक्कवता हृदय पटल पर अंकित होती जा रही थी और द्रुत लय ने उसे एक बार फिर गति दी। द्रुत लय की गति और ऊर्जा के कारण इसमें उत्साहपूर्ण भाव समाहित होता है। संगीतकार और कलाकार का उत्साह और आनंद श्रोताओं तक पहुंचता है।
उस लय में आनंद था और भाव प्रबल हो गए जब बांसुरी ने ओम जय जगदीश की धुन बजाई , उस भाव की व्याख्या कैसे करू जब आँखों के किनारे आँसू थे और मन और आत्मा उस लय पर बैठ कर अपने इष्ट देव के पास पहुंच जाना चाहती थी उन्हीं शब्दों की तरह जो उस लय के साथ मन में बज रहे थे
दीन बंधु दुःख हर्ता , तुम ठाकुर मेरे 
अपने हाथ बढ़ाओं , द्वार खड़ा मैं तेरे   
 
और माध्यम था हरी प्रसाद जी का बांसुरी वादन।
उनसे जब मैनें बांसुरी का आध्यात्म उनसे जानना चाहा तब वो बोले , ये साज़ उनके हृदय के बहुत करीब है जैसे आती जाती सांस के माध्यम से प्रभु नाम का स्मरण करने की प्रेरणा हमें मिलती है , वैसे ही बांसुरी जब उनके होठों पर लगती है और उसे हाथों में थाम कर जब अपनी सांस उसमें भरते है तो प्रभु को स्मरण अनुभूति होती है , ये वाद्य तो बांस से बना है , कितनी अद्भुत लीला है कि खाली बांस सांसो की आवाजाही से इतना मधुर बज उठता है। “
 
कार्यक्रम में उनका साथ तबले पर राम कुमार मिश्रा , महिला बांसुरीवादक सुचिस्मिता और किरण बिष्ट ने दिया। बड़े सहज अंदाज में उन्होंने कहा कि कृष्ण राधा के लिए और अपनी गोपियों के लिए बांसुरी बजाते थे लेकिन उन्होंने अपनी गोपियों को बांसुरी नहीं सिखाई लेकिन मेरे पास दो राधा स्वरूपा है जो बांसुरी बजा रही है।
 
– अंशु हर्ष 

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