
राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर, जयपुर में अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस के अवसर पर एक भव्य शास्त्रीय नृत्य संध्या का आयोजन किया गया, जिसमें देश की ख्यातिप्राप्त नृत्यांगनाओं ने अपनी अनूठी प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम की शुरुआत हुई प्रसिद्ध भरतनाट्यम नृत्यांगना रमा वैद्यनाथन की अद्वितीय प्रस्तुति से। उन्होंने मीरा बाई की पदावली को भरतनाट्यम की पारंपरिक वर्णम शैली में प्रस्तुत किया। रमा वैद्यनाथन की प्रस्तुति में भक्ति, संगीत और शास्त्रीय नृत्य का अद्भुत समन्वय देखने को मिला। इस प्रस्तुति के लिए संगीत सुप्रसिद्ध गायिका सुधा रघुरामण द्वारा रचा गया था। संगत में शुभमणि चंद्रशेखर (नट्टुवंगम), सन्निधि वैद्यनाथन (मृदंगम), जी. रघुरामण (बांसुरी) और सुधा रघुरामण (स्वर) सम्मिलित रहे।
इसके पश्चात प्रस्तुत हुआ “नूर-ए-खुसरो”, जो एक भावपूर्ण कथक नृत्य-प्रस्तुति थी। यह प्रस्तुति रश्मि उप्पल द्वारा परिकल्पित और कोरियोग्राफ की गई थी, जिसमें अमीर खुसरो की सूफियाना विरासत को नृत्य और संगीत के माध्यम से जीवंत किया गया। कथक की सुंदर गत, लयकारी, चक्करदार घूम और भावाभिनय ने दर्शकों को आध्यात्मिक अनुभव से भर दिया। इस प्रस्तुति में रश्मि उप्पल के साथ सलोनी टंडन, अनुष्का शर्मा, ऋतिका माहेश्वरी और मनुहर जोशी ने मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।
संगीत संगत में तबला पर मोहित चौहान, पखावज पर ऐश्वर्य आर्य, सारंगी पर अमीरुद्दीन जी, हारमोनियम व स्वर पर राजेंद्र मेवाल तथा क़व्वाली स्वर में तनवीर साबरी (साबरी ब्रदर्स समूह) ने अपनी उपस्थिति से प्रस्तुति को ऊँचाइयाँ दीं। तराना की मूल रचना फराज़ अहमद द्वारा की गई थी।
कार्यक्रम के अंत में खुसरो की इन पंक्तियों के माध्यम से प्रेम और भक्ति का संदेश प्रतिध्वनित हुआ:
“खुसरो पाती प्रेम की, बिरला बाँचे कोय।
वेद, कुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय।”
यह संध्या न केवल शास्त्रीय नृत्य प्रेमियों के लिए एक सांस्कृतिक पर्व साबित हुई, बल्कि भारत की विविधता में एकता और आध्यात्मिकता के अद्वितीय संगम का उत्सव भी बनी।